अश्वसेना साह्याने चढे हिमालयावरी /
पाद धुळी मुळे वाटे शिखरे चालली वरी // ७१ //
सैन्यापरी बली सिंह कंदरी स्वथ झोपती /
तदघोषे वळुनी किंचित निर्भयत्वास दाविती // ७२ //
भूर्जी जें मंद वाहोनी वंश कुंजात नादती /
गंगावु कण घेवोनी वायू भूपास सेविती // ७३ //
छायेत थांबले योद्धे रुद्राक्ष वन पाहुनी /
पाषाणा गंध ये जेथें कस्तुरी मृग बैसुनी // ७४ //
देवदार तंरू संगे गज बंधास बांधियले /
रात्री दिव्योषाधी तेथे अतैल दीप शोभले // ७५ //
पडाव सोडुनी जातां बंधन क्षत ज्यावरी /
ते देवदार भिल्लाना सांगती उंच ते करी // ७६ //
पर्वतीय गणा संगे घोर ते युद्ध जाहले /
पाषाण भिडता बाणां अग्नी स्फुल्लिंग चालले // ७७ //
शरें उत्सव संकेता नीरुच्छाह करोनिया /
यशगाथा स्वबाहूच्या किन्नरा लावी गावया // ७८ //
दावितो सार दोघांचे उपहारचि हातिचे /
अद्रिला बल राजाचे नृपा सत्व हिमाद्रिचे // ७९ //
तेथोनि खालती आला अखंड येश स्थापुनी /
रावणे हलविले ऐसा जाई कैलास लाजुनी // ८० //
लंघिता ब्रम्ह पुत्राते आसाम भूप कांपती /
गजांच्या शृंखला बंघे काला गुरु थरारती // ८१ //
वर्षे विना खगा झांकी धुलीजी रथ मार्गीचा /
कामरूपां न साहे ती सेनेची गोष्ट कोठची // ८२ //
कामरूप रघुतें जो इंद्राहूनि पराक्रमी /
मत्त ज्या दंतिनें अन्यां जिंके त्यां अर्पुनी नमी // ८३ //
भूप तो कामरूपाचा स्वर्ण पीठाधि देवता /
तत्पाद कांति मानोनी झाला रत्नेच पूजिता // ८४ //
दिशास जिंकुनी गाजी फिरला स्थापुनी धुली /
रथांची शिरी राज्याच्या होती छत्राविणे खुली // ८५ //
विश्व जिन्नाम यज्ञातें करी सर्वस्व अर्पिण्या /
महात्मे जोडिती अर्था मेघा परि विसर्जीण्या // ८६ //
यज्ञातीं सचिव मतें करोनि मना /
राजांच्या हरित पराजयाप माना // ८७ //
दीर्घांत पूर विरहे अधीर त्यांसी /
आज्ञा दे निज नगरास जावयासी // ८८ //
तें युक्त ध्वज कुलीशान पत्र चिन्हें /
राजाच्या चरण युगां प्रसन्न तेने // ८९ //
प्रस्थान प्रणति निमित्य आक्रोनिया /
जाती गौर सुम रजासि टाकोनिया // ९० //
श्री कालिदास रचना रघुवंश ग्रंथ /
काव्यांत आद्य गणपती इजलागी संत // ९१ //
वर्णोनि ज्यांत रघू दिग्विजयास सांग /
केला समाप्त बहु गोड चतुर्थ सर्ग // ९२ //
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