भुपा सान्निध राहोनि जें बंदी त्यासं सेविती /
पुरवुनी सार्थ शब्दानां वर्णी त्या तें सरस्वती // ६ //
मनु इत्यादि भूपांनी भोगिली मेदिनी जरी /
अनुराग तया दावी अभुक्ता कामिनी परी // ७ //
यथा पराध दंडानें जनातें मान्य हो मनीं /
समशीतोष्ण तो भासे भानूसा दक्षिणायनी // ८ //
पित्या परि गुनाधिक्यें पाहोनि स्तविती मुला /
मधुर आम्रफलें आल्या कोणी ना स्मरती फुला // ९ //
धर्मनीती कूटनीती नव भूपास सांगती /
शास्त्रज्ञ आयके दोन्ही स्विका री पहिलीच ती // १० //
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