शनिवार, १८ सप्टेंबर, २०१०

महाकवी कालिदास रचित " रघु वंश " 5

कुमार धात्री कर अगुली धरी/
प्रमाण राजा प्रती जाऊनी करी/
वेद तिच्या शिक्षित आद्य भाषणा/
गमे बहू तोष पित्याचिया मना // २५ //

वर्षा सुधेची जव हो तनुवरी /
मनास हो तोष जसा ज्या परी /
सुता निजां की नरराज घेउनी /
मिटोनी नेत्रां सुख पावला मनी // २६ //

स्थितीचिये पालक जें प्रजापती /
गुणाढ्या रूपे निजस्टष्टी पाहती /
स्वरूप भेदें निज थोर संतती /
ब्रम्हा तया कोसलभूप मानिनी // २७ //

अमात्य पुत्रासह जात चौल तो/
समान वर्षीय मुलात शोभतो /
शिकोनिया त्यासह मुल अक्षरे /
नदीमुखे वाग्मय सागरी शिरे // २८ //

कृपोपनीता बटूतें गुरुजनी /
शशास्र अध्यापिले मनातुनी /
प्रयन्य सारेच फलास दाविती /
क्रियाहि सप्ताचित्र स्थान पावती // २९ //

निजाश्व जें जिंकिती मारुता प्रती /
तयागुणे भानू कृमी दिशा प्रती /
विशाल प्रज्ञा रघु बुद्धिने महा /
तरे चतुः सागर शात्रहि पहा //३० //

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