लुप्त इंद्रधनू होतां चापहस्त रघु गमें /
प्रजा कल्याण साधाया झटती तें अनुक्रमें // १६ //
श्वेत कामाला करी छत्र, काश चामर जरी /
शरद शोभा न पावेची त्याची केल्या बरोबरी // १७ //
प्रसन्न मुख राजातें धवल कांती शशी प्रती /
विलोकितां जना प्रेमा न हो कमी न हो अती //१८ //
शुभ्रत्वे यश तें त्याचें वाटे झालें चहूंकडे /
हंस पंक्तीत, तारांत शुभ्र पद्मे सरीं खडे // १९ //
इक्षु छायेंत बैसोनी पिकें राखिती ज्या स्त्रिया /
गाती रक्षक कीर्तीला मुलें करिती साथ ज्या // २० //
अगस्ति उदया संगें जलें निर्मल जाहलीं /
अजय शंकी शत्रु मनें महा उद्वेग पावलीं // २१ //
मदोन्मत्त वृषांनी तै नदी तीरांस खणि लें /
पराक्रम रघुचा जो त्या चें नाटक मांडिलें // २२ //
सेउनी सप्तपर्णांच्या पुष्पांचा गंध तत्करी /
श्राविति मद इर्षेनें सप्तांगांनी परोपरी // २३ //
नद्या स्वल्प जला केल्या, मार्गां शोषुनि पंकिलां /
शरद सांगे रघु लागीं उठा दिग्विजया चला // २४ //
अश्व नीराजनी देतां विद्युक्त मग आहुती /
ज्वालारुप करें अग्नि जया देत रघु प्रती // २५ //
रक्षोनि श्रान्त दुर्गांते नाशोनि रिपु आवघे /
षट् विधी सैन्य घेवोनी रघु दिग्विजया निघे // २६ //
वयस्क पौर योषा त्या लाह्या फ़ेकिति त्यावरी /
क्षीर सागरीं स्वेतोर्मी जेंविं नारायणा वरी //२७ //
इन्द्र तुल्य रघु चाले आधीं पूर्व दिशे कडे /
वायूनें फडकती झेंडे सारिती शत्रु दों कडे // २८ //
मेघा परि गज श्रेणी रथें उधळिता धुळी /
नभा परी क्षिती भासे, नभ भासे क्षितीपरी // २९ //
कीर्ती मागोनियां घोष तया मागें धूली येतसे /
त्या मागें रथ इत्यादि सेना चत्वार जात से // ३० //
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